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राम मंदिर आंदोलन के नायकों को मिलेगा अमर सम्मान

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KKN गुरुग्राम डेस्क | अयोध्या के राम जन्मभूमि परिसर में अब सिर्फ भगवान श्रीराम के दर्शन नहीं होंगे, बल्कि वहां आने वाले श्रद्धालु आंदोलन, आस्था और संघर्ष की जीवंत गाथा से भी रूबरू होंगे। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए यह तय किया है कि राम मंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महापुरुषों के नाम पर परिसर के प्रमुख भवनों का नामकरण किया जाएगा।

यह निर्णय 7 मार्च 2025 को हुई ट्रस्ट की बैठक में लिया गया था, जिसमें ट्रस्टियों ने सर्वसम्मति से आंदोलन के महानायकों को चिरस्थायी श्रद्धांजलि देने के पक्ष में मत दिया।

संघर्ष की भूमि पर इतिहास को जीवंत करने की पहल

अयोध्या सदियों से धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संघर्ष का केंद्र रही है। अब जब राम मंदिर का निर्माण कार्य तेज़ी से पूर्णता की ओर बढ़ रहा है, तब इस आंदोलन से जुड़े नायकों को स्थायी सम्मान देने का निर्णय लिया गया है।

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का मानना है कि यह फैसला न सिर्फ श्रद्धालुओं की भावनाओं से जुड़ा है, बल्कि यह अगली पीढ़ियों को भी प्रेरित करेगा।

महंत रामशरण दास ने इस पहल पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:

“यह एक भावनात्मक और प्रेरणादायक निर्णय है, जो आंदोलन के प्रतीकों को सम्मानित करेगा और मंदिर परिसर को केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि संघर्ष और विजय की स्मृति भी बनाएगा।”

इन भवनों का होगा नामकरण – जानिए किसके नाम पर क्या होगा

 अशोक सिंघल सभागार

राम मंदिर परिसर के दक्षिणी हिस्से में एक 500 सीटों वाला भव्य सभागार बन रहा है। इसका नाम विहिप के प्रमुख रणनीतिकार अशोक सिंघल के नाम पर रखा जाएगा, जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाया था।
यह सभागार अप्रैल 2026 तक बनकर तैयार हो जाएगा और इसका उपयोग धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक कार्यक्रमों के लिए किया जाएगा।

 बाबा अभिराम दास प्रवेश द्वार

यात्री सुविधा केंद्र में जो मुख्य प्रवेश द्वार होगा, उसका नाम बाबा अभिराम दास के नाम पर रखा जाएगा। उन्हें 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित परिसर में रामलला की मूर्ति स्थापित करने का श्रेय जाता है।
यह घटना आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई थी और बाबा अभिराम दास को आज भी एक साहसी संन्यासी के रूप में याद किया जाता है।

 महंत अवैद्यनाथ यात्री सुविधा केंद्र

रामलला दर्शन पथ पर स्थित प्रमुख यात्री सुविधा भवन का नाम महंत अवैद्यनाथ के नाम पर रखा जाएगा।
महंत अवैद्यनाथ, जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु भी थे, ने आंदोलन को राजनीतिक और धार्मिक दोनों स्तरों पर मजबूती प्रदान की।
यह सुविधा केंद्र तीर्थयात्रियों के लिए आवास, चिकित्सा, जल और खानपान जैसी सुविधाएं देगा।

 रामचंद्रदास परमहंस सेवा केंद्र

राम जन्मभूमि दर्शन मार्ग पर बन रहा एक और सेवा केंद्र रामचंद्रदास परमहंस के नाम से जाना जाएगा। वे राम जन्मभूमि न्यास के पहले अध्यक्ष थे और 9 नवंबर 1989 को मंदिर निर्माण का प्रथम शिलान्यास उनके नेतृत्व में किया गया था।
उनका योगदान न केवल धार्मिक था, बल्कि उन्होंने आंदोलन को संघर्ष से साधना तक पहुंचाया।

मुख्य प्रवेश द्वार होंगे जगद्गुरुओं के नाम पर

ट्रस्ट ने पहले ही निर्णय लिया था कि राम मंदिर के चार प्रमुख प्रवेश द्वार प्रसिद्ध जगद्गुरुओं के नाम पर होंगे। यह कदम मंदिर के आध्यात्मिक स्वरूप और सनातन परंपरा को उजागर करता है।

यह नामकरण न केवल श्रद्धा का विषय है, बल्कि विरासत और पहचान का प्रतीक भी है।

राम मंदिर: केवल आस्था नहीं, संघर्ष की कहानी भी

महंत नृत्यगोपाल दास, जो श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं, ने कहा:

“राम मंदिर अब सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता का प्रतीक बन चुका है। यह मंदिर पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य कर रहा है।”

उन्होंने हाल ही में ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर रामलला और सप्त मंडपम में दर्शन किए। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि वे 5 जून को हुए प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं हो पाए थे, लेकिन उन्होंने मंदिर के दर्शन करके अपनी श्रद्धा अर्पित की।

मंदिर परिसर बनेगा प्रेरणा और स्मृति का संगम

यह निर्णय राम मंदिर को भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना देगा। अब जब श्रद्धालु मंदिर दर्शन के लिए आएंगे, वे इन भवनों के नाम देखकर यह जान सकेंगे कि कैसे सैकड़ों लोगों की तपस्या, बलिदान और संकल्प ने इस मंदिर को संभव बनाया।

हर भवन, हर द्वार और हर मार्ग अब एक कहानी कहेगा — श्रद्धा की, संघर्ष की और सफलता की।

राम मंदिर का निर्माण केवल एक धार्मिक विजय नहीं, बल्कि संघर्षशील आत्माओं के सम्मान की विजय भी है। अशोक सिंघल, अभिराम दास, अवैद्यनाथ और रामचंद्रदास परमहंस जैसे महापुरुषों के नाम पर भवनों का नामकरण न केवल उनका सम्मान है, बल्कि यह भारत की धार्मिक चेतना और सांस्कृतिक अस्मिता का स्थायी दस्तावेज भी बनेगा।

dimgrey-bison-994082.hostingersite.com इस ऐतिहासिक निर्णय का स्वागत करता है और श्रद्धालुओं से आह्वान करता है कि जब आप अयोध्या आएं, तो इन भवनों के माध्यम से संघर्ष और संकल्प की उस ऊर्जा को भी महसूस करें, जिसने इस युगांतरकारी मंदिर को आकार दिया।

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