KKN गुरुग्राम डेस्क | होलिका दहन, जिसे छोटी होली भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है क्योंकि यह हमें अच्छाई की ताकत को समझाता है और यह पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ एक अहम अवसर है। होलिका दहन के दौरान विभिन्न परंपराएँ और रीति-रिवाज होते हैं, जो इसे खास बनाते हैं।
Article Contents
होलिका दहन और पौराणिक कथाएँ
होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत एक पौराणिक कथा से जुड़ी है। यह कथा प्रहलाद और होलिका की है। प्रहलाद, जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे, उनके पिता हिरणकशयपु ने अपने बेटे के विष्णु भक्ति के कारण उसे मारने की कई बार कोशिश की। एक दिन होलिका, जो आग से अछूत थी, प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर आग में बैठ गई। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रहलाद बच गए। इस घटना को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में देखा जाता है और इसे होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है।
होलिका दहन की परंपराएँ और रीतियाँ
भारत में होलिका दहन के दौरान विभिन्न परंपराएँ निभाई जाती हैं, जो प्रत्येक राज्य और क्षेत्र में थोड़ी अलग होती हैं। हालांकि, सबसे आम परंपरा यह है कि लोग होलिका की प्रतीकात्मक प्रतिमा बनाकर उसे जलाते हैं। यह प्रतीकात्मक जलना बुराई के नाश और अच्छाई की विजय का प्रतीक होता है। लोग इसके चारों ओर इकट्ठा होते हैं, भजन गाते हैं और नाचते हैं।
बिहार में होलिका दहन के दौरान लोकगीत और जोगीरा गाए जाते हैं, जिनमें लोग खूब झूमते और नाचते हैं। इस दिन विशेष रूप से भोजन की परंपरा भी निभाई जाती है, जिसमें पुआ, पकवान, बड़ी आदि होलिका में आहुति दी जाती है। यह परंपरा पुरानी मान्यताओं और रीति-रिवाजों का हिस्सा है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है।
होलिका दहन का मुहूर्त और समय
होलिका दहन के दिन का समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि इसका सही मुहूर्त होने पर ही यह धार्मिक दृष्टिकोण से सफल माना जाता है। पंचांग के अनुसार, इस बार फाल्गुन पूर्णिमा की तिथि 13 मार्च को सुबह 10:37 बजे से शुरू हो रही है और इसका समापन 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे होगा। इसलिए होलिका दहन 13 मार्च को किया जाएगा और होली 15 मार्च को मनाई जाएगी।
यह सुनिश्चित किया जाता है कि होलिका दहन विशेष मुहूर्त के दौरान हो, ताकि यह धार्मिक दृष्टि से शुभ माना जाए। मुहूर्त का समय पूरी तरह से पंचांग के अनुसार तय किया जाता है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सही समय पर अग्नि को प्रज्वलित किया जाए।
भद्राकाल का प्रभाव और होली का सही दिन
कई बार होलिका दहन की पूजा और होली की तारीखें भद्राकाल (अशुभ समय) के कारण प्रभावित हो सकती हैं। इस वर्ष, 14 मार्च को भद्राकाल की स्थिति रहेगी, जो होली के प्रारंभ के लिए उपयुक्त नहीं है। इस कारण से, 15 मार्च को उदय तिथि में होली मनाने का निर्णय लिया गया है। यह परंपरा और पंचांग के अनुसार बहुत महत्व रखती है, क्योंकि इसे धार्मिक रूप से शुभ माना जाता है।
होलिका दहन के दौरान खाने-पीने की परंपराएँ
होलिका दहन के साथ-साथ खाने-पीने की परंपराएँ भी महत्वपूर्ण होती हैं। इस दिन विशेष रूप से पुआ, पकवान, बड़ी, और अन्य पारंपरिक मिठाइयाँ होलिका में आहुति देने की परंपरा है। यह भोजन समर्पण का प्रतीक होता है, और इसे पवित्र माना जाता है। इसे करने से माना जाता है कि हम अपनी बुराइयों और नकरात्मकता को छोड़कर सकारात्मकता की ओर बढ़ते हैं।
होलिका दहन का मतलब केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार और समुदाय के बीच रिश्तों को मजबूत करने का अवसर भी है। इसके बाद, होली के दिन लोग एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और मिठाइयाँ बांटते हैं, जो भाईचारे और प्रेम का प्रतीक होती हैं।
बिहार में होलिका दहन की विशेषता
बिहार में होलिका दहन का विशेष महत्व है। यहां के लोग इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। बिहार में होलिका दहन के बाद “जोगीरा” जैसे पारंपरिक लोक गीत गाए जाते हैं। यह गीत प्रेम, उल्लास, और समुदाय की एकता को प्रदर्शित करते हैं। लोग इन गीतों के साथ नाचते-गाते हैं और होली के लिए तैयार होते हैं।
इसके अलावा, बिहार में कई स्थानों पर होलिका की प्रतीकात्मक मूर्तियाँ बनाई जाती हैं, जिन्हें लोग एक जगह पर इकट्ठा करके जलाते हैं। यह सामूहिकता और एकता का प्रतीक है और इसे पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
होलिका दहन न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह एकता, सकारात्मकता, और नये आरंभ का प्रतीक भी है। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि अच्छाई और सत्य का हमेशा जीत होती है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। होलिका दहन के दौरान लोग पुराने गिले-शिकवे भूलकर एक दूसरे से गले मिलते हैं और नए सिरे से जीवन की शुरुआत करते हैं।
होलिका दहन के बाद, होली के उत्सव के रूप में रंगों, खुशियों और भाईचारे का दिन आता है। यह पर्व एक संदेश देता है कि हमें अपने दिलों से नफरत और गुस्से को जलाकर प्रेम और भाईचारे को अपनाना चाहिए।
इसलिए, जब 13 मार्च को होलिका दहन की अग्नि प्रज्वलित होगी, तो हम सब एक साथ मिलकर इस दिन को आनंद और एकता के प्रतीक के रूप में मनाएं।
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- More
- Click to share on LinkedIn (Opens in new window) LinkedIn
- Click to share on Tumblr (Opens in new window) Tumblr
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on Threads (Opens in new window) Threads
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
Related
Discover more from
Subscribe to get the latest posts sent to your email.