KKN गुरुग्राम डेस्क | भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए घोषणा की है कि जनगणना 2025 में पहली बार जातिवार आंकड़ों को औपचारिक रूप से शामिल किया जाएगा। आज़ादी के बाद पहली बार ऐसा होगा जब सभी धर्मों और समुदायों में मौजूद जातियों की संख्या, उनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति का सरकारी आंकड़ों के जरिए मूल्यांकन किया जाएगा।
यह निर्णय हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की बैठक में लिया गया। बताया जा रहा है कि इसका उद्देश्य है – ओबीसी सूची को ताजा आंकड़ों के आधार पर पुनर्गठित करना और जातिगत राजनीति को खत्म करना।
फिलहाल भारत में पिछड़ा वर्ग (OBC) आरक्षण की नींव 1931 की जनगणना पर आधारित है, जो आज के सामाजिक और आर्थिक संदर्भ में अप्रासंगिक मानी जाती है। इसी आधार पर पिछड़ी जातियों की आबादी का आंकलन कर 27% आरक्षण का प्रावधान किया गया।
लेकिन वर्तमान में:
कोई अद्यतन जातिगत डेटा मौजूद नहीं है।
कई जातियों को बिना वैज्ञानिक आधार के ओबीसी सूची में जोड़ा या हटाया गया।
राज्यों में कराए गए सर्वेक्षणों पर हमेशा सवाल खड़े हुए हैं।
जनगणना 2025 में जातिवार डेटा शामिल करने का निर्णय इन कमियों को दूर करने की दिशा में एक ठोस कदम माना जा रहा है।
आरएसएस ने स्पष्ट किया है कि वह जातिवार गणना के खिलाफ नहीं है, बल्कि वह चाहता है कि इसका राजनीतिक दुरुपयोग न हो। पलक्कड़ में हुई समन्वय बैठक में आरएसएस ने जोर देकर कहा कि सटीक आंकड़े एक जिम्मेदार सामाजिक नीति की नींव हैं।
इसी कारण यह निर्णय लिया गया कि जातिवार गणना को जनगणना के आधिकारिक ढांचे में ही जोड़ा जाए ताकि यह एक स्थायी और पारदर्शी प्रक्रिया बन सके।
सरकार की योजना है कि आने वाले वर्षों में हर दशक में होने वाली जनगणना के साथ जातिवार गणना को भी जोड़ा जाए। इससे:
प्रत्येक जाति के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक आंकड़े उपलब्ध होंगे।
जिन जातियों की स्थिति बेहतर हो चुकी है, उन्हें सूची से हटाया जा सकेगा।
नई और वास्तविक रूप से पिछड़ी जातियों को सूची में जोड़ा जा सकेगा।
यह ओबीसी सूची में संशोधन के लिए वैज्ञानिक आधार बन सकता है और राजनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता को कम करेगा।
जनगणना 2025 के जातिवार आंकड़ों के आधार पर:
उन जातियों को सूची से बाहर किया जा सकता है जो अब सामाजिक रूप से सशक्त हो चुकी हैं।
वहीं वे जातियाँ जो अब भी सामाजिक, शैक्षणिक या आर्थिक रूप से पिछड़ी हैं, उन्हें शामिल किया जा सकता है।
इस प्रकार की पारदर्शिता सरकार को न केवल नीतिगत रूप से मज़बूत बनाएगी, बल्कि वह न्यायिक चुनौतियों का भी सामना बेहतर तरीके से कर सकेगी। सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी सूची को लेकर जो याचिकाएँ दायर होती हैं, वे अक्सर ठोस डेटा के अभाव में कमजोर साबित होती हैं।
संप्रग सरकार ने 2011 में सामाजिक आर्थिक जातीय जनगणना (SECC) करवाई थी, लेकिन उसे मूल जनगणना से अलग रखा गया और वह एक स्वतंत्र सर्वेक्षण के रूप में किया गया। नतीजा:
भारी गड़बड़ियाँ सामने आईं।
डेटा को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।
जातियों की पहचान में कई त्रुटियाँ पाई गईं।
इस अनुभव से सबक लेकर मोदी सरकार ने इसे जनगणना के आधिकारिक ढांचे में शामिल करने का निर्णय लिया ताकि आंकड़ों की प्रामाणिकता और स्वीकार्यता बनी रहे।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, इस बार की जनगणना में:
सभी धर्मों के लोगों से उनकी जाति और उपजाति की जानकारी ली जाएगी।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति, शिक्षा, रोजगार, और आय जैसे बिंदुओं पर भी डेटा जुटाया जाएगा।
डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जाएगा ताकि धोखाधड़ी या हेरफेर की संभावना कम हो।
प्रक्रिया को संवेदनशील और गोपनीय रूप से अंजाम दिया जाएगा।
सरकार का कहना है कि इस कदम का मुख्य उद्देश्य है जाति आधारित वोट बैंक की राजनीति को खत्म करना। जब हर जाति की वास्तविक स्थिति पर आधारित डेटा उपलब्ध होगा, तो राजनीतिक दलों के लिए जातियों का भावनात्मक शोषण करना मुश्किल हो जाएगा।
यह फैसला सामाजिक न्याय के क्षेत्र में एक संरचनात्मक परिवर्तन की शुरुआत माना जा रहा है।
हालांकि सरकार इसे एक सुधारात्मक कदम बता रही है, लेकिन यह स्पष्ट है कि:
कुछ जातियों के हटाए जाने पर राजनीतिक विरोध हो सकता है।
नव-शामिल जातियों को लेकर विवाद भी खड़े हो सकते हैं।
राज्य सरकारों की ओबीसी सूची और केंद्र की सूची में भिन्नता आ सकती है।
इन संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार को राजनीतिक सहमति, तकनीकी तैयारी और पारदर्शिता के साथ यह कार्य करना होगा।
जनगणना 2025 में जातिवार गिनती को शामिल करना भारत की आरक्षण नीति और सामाजिक न्याय प्रणाली के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है। यह फैसला न केवल जातिगत असमानता की पहचान में मदद करेगा, बल्कि आरक्षण के लाभ को उनके पास पहुँचाएगा जिन्हें इसकी वास्तव में ज़रूरत है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले वर्षों में सरकार इस डेटा का कैसे उपयोग करती है, और क्या यह निर्णय भारत को जातिगत राजनीति से मुक्त करने में सफल होता है।
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