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वायनाड में क्या है जो अमेठी में नहीं, दक्षिण भारत की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर

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दक्षिण भारत की राजनीति का राष्ट्रीय महत्व

KKN न्यूज ब्यूरो। लोकसभा चुनाव 2024 में पहली बार दक्षिण भारत की राजनीति… राष्ट्रीय पटल पर चर्चा में है। आलम ये है कि उत्तर भारत के लोग भी इस बार दक्षिण भारत की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे है। दरअसल, बीजेपी ने अपने आधार वोट को लेकर दक्षिण में जिस तेजी के साथ अपनी सक्रियता बढ़ाई है… इसकी वजह से दक्षिण भारत की राजनीति… अचानक से राष्ट्रीय पटल पर आ गई है। दक्षिण भारत की राजनीति में ऐसा क्या है… जिसको लेकर राष्ट्रीय राजनीति में हलचल है। दक्षिण भारत के बनते- बिगड़ते समीकरण और सम्भावनाएं और दक्षिण भारत की राजनीति में बीजेपी के लिए बनता- बिगड़ता स्पेस…। कॉग्रेस… बामपंथ और दक्षिण के क्षेत्रीय दलों की वहां… वर्तमान की राजनीति में दिशा और दशा की पड़ताल के साथ राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिए दक्षिण भारत की राजनति दिलचस्प मोड़ पर है।

दक्षिण में बीजेपी ने लगाया जोड़

दक्षिण के जिन राज्यों पर बीजेपी का सर्वाधिक फोकस है… उनमें तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और केरल… शामिल है। दक्षिण के इन राज्यों में अपनी पैठ बनाने के लिए बीजेपी ने एड़ी-चोटी का जोड़ लगा दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं प्रचार का कमान अपने हाथों में लिया हुआ है। प्रधानमंत्री… खुद कितने गंभीर है… इसका अंदाजा… आप इस बात से लगा सकतें हैं… कि इस साल के शुरूआती 80 रोज में से 23 रोज… प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दक्षिण भारत में बिताया है। सेंगोल से लेकर तमिल संगम तक… प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दक्षिण फतह करने की कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी है। यानी, बीजेपी ने दक्षिण भारत की राजनीति को बहुत ही गंभीरता से लिया है।

उत्तर केरल में बीजेपी की चुनौती

केरल में लोकसभा की कुल 20 सीट है। देश की सियासत में केरल की ये 20 सीट… किसी का भी खेल बिगाड़ने का माद्दा रखती है। केरल की राजनीति को समझने के लिए इसको तीन अलग- अलग हिस्सों में बाट कर देखना होगा। पहला है… उत्तर केरल। इसमें कुल चार जिला है। कासरगोड, कन्नूर, कोजिकोडे और वायनाड। वहीं वायनाड… जहां से राहुल गांधी… वर्ष 2019 में लोकसभा का चुनाव जीत कर संसद में आये थे। इसके बाद वायनाड… अचानक से सुर्खियों में आ गया था। सवाल उठता है कि यूपी के अमेठी से निकल कर राहुल गांधी… केरल के वायनाड क्यों चले गए। दरअसल, उत्तर केरल के इन चार जिलों में मुस्लिम और इसाई धर्म को मानने वालों की बड़ी संख्या हैं। हालांकि, केरल के निचले इलाकों में अभी भी हिन्दू डोमिनेट करता है।  इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वामपंथियों के नेतृत्व में अल्पसंख्यक समुदाय केरल की राजनीति में अपना दबदबा कायम कर चुकें हैं।  इन्हीं कारणों से राहुल गांधी को अपने लिए वायनाड… सुरक्षित लगा। वो इस बार भी वहीं से चुनाव लड़ रहें हैं।

अल्पसंख्यक डोमिनेट करता है मध्य केरल में

मध्य केरल में चार जिला आता है। मल्लपुरम, पलक्कड़, त्रिशूर और एर्नाकुलम…। मल्लपुरम में 70 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। यहां जीत हार के लिए किसी और समीकार की कोई जरुरत नहीं है। बाकी के तीन जिलों में भी 50 फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिमो की है। यानी मध्य केरल में मुस्लिम समुदाय का… राजनीति पर करीब- करीब एकाधिकार है। कहतें हैं कि मध्य केरल की राजनीति में हिन्दुओं की भूमिका… नगन्य है। इन्हीं कारणों से मध्य केरल पर एलडीएफ या यूडीएफ की पकड़ हमेशा से मजबूत रही है। क्योंकि, अल्पसंख्यक समुदाय के बीच इन्हीं दोनों का अपना- अपना आधार वोट रहा है।

दक्षिण केरल में नायर और एझवा पर है नजर

दक्षिण केरल में कुल छह जिला है। इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, पथानामथिट्टा, कोल्लम और तिरुवनंतपुरम…। ये छह जिला है। इसमें से इडुक्की और कोट्टायम जिला में अल्पसंख्यक आबादी… आधा से अधिक है। जबकि, अलाप्पुझा, कोल्लम और तिरुवनंतपुरम में हिंदुओं की आबादी अधिक है। ऐसे में बीजेपी के लिए केरल में पांव पसारना आसान नहीं होने वाला है। कहतें हैं कि वर्ष 1982 के बाद से केरल में या तो एलडीएफ की सरकार बनी है… या फिर यूडीएफ की…। हालांकि, सबरीमाला की घटना के बाद से बीजेपी ने केरल में अपना पांव जमाना शुरू कर दिया था। बीजेपी की नजर केरल के नायर समुदाय पर है। केरल में नायर लोगों की आबादी करीब 15 फीसदी है। इसके अतिरिक्त एझवा समुदाय के लोगों पर भी बीजेपी का असार देखा जा रहा है। इनकी आबादी करीब 28 फीसदी है। वर्तमान सीएम के. विजयन इसी समुदाय से आते है। ऐसे में इस समुदाय के लोग बीजेपी का कितना साथ देंगे… यह देखने वाली बात होगी।

बीजेपी के लिए कहा है सम्भावना

केरल की राजनीति में अल्पसंख्यक समुदाय का जबरदस्त बोलबोला है। ऐसे में सवाल उठता है कि केरल को लेकर बीजेपी में इतना उत्साह क्यों है…। दरअसल, गुजिश्ता सालों में मुस्लिम कट्टरपंथी… केरल के चर्च को अपना निशाना बना रहें हैं। इससे इसाई समुदाय में आक्रोश है। दिलचस्प बात ये है कि केरल में बीजेपी के रणनीतिकारो की नजर… इसी ईसाई समुदाय पर है। कहतें हैं कि केरल में ईसाई लोगों की आबादी 18 फीसदी से अधिक है। इन्हीं कारणों से  बीजेपी के रणनीतिकार… केरल में ईसाई प्लस हिन्दू समीकरण के एजेंडा पर काम शुरू कर दिया है। अब इसमें बीजेपी को कितना सफलता हाथ लगेगा… यह देखना अभी बाकी है।

केरल में मुद्दा और चेहरा

केरल की राजनीति में स्थानीय मुद्दे और स्थानीय नेताओं का हमेशा से बोलबाला रहा है। केरल में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा के. सुरेंद्रन है। दूसरी ओर इनका मुकावला सी.पी.आई. एम. के नेता और मुख्यमंत्री पी. विजयन से है। मुख्यमंत्री पी विजयन केरल की राजनीति में कई सालों से सक्रिय हैं। इसके अतिरिक्त तिरुवनंतपुरम के सांसद और कॉग्रेस के कद्दावर नेता शशि थरूर और देश के रक्षा मंत्री रह चुके एके एंटनी… जैसे कद्दावर नेताओं के रहते… केरल में बीजेपी… अपने लिए कितना स्पेस बना पायेगी… यह तो वक्त ही बतायेगा।

तमिलनाडु में उलटफेर होगा क्या

तमिलनाडु दक्षिण भारत का एक प्रमुख राज्य है। यहां लोकसभा की 39 सीट है। बीजेपी ने छह दलों से गठबंधन करके चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। स्वयं बीजेपी तमिलनाडु के 23 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बीजेपी ने यहां से एक पूर्व गवर्नर तमिल साई को मैदान में उतार कर सभी को चकित कर दिया है। केंद्रीय मंत्री मुरुगन और प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई को भी उम्मीदवार बनाया गया है। पिछले दिनों तमिलनाडु के कोयंबटूर में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी… रोड शो कर चुके है। इस रोड शो में… जो भीड़ उमड़ी थी… इसके बाद से ही बीजेपी का हौसला सातवे आसमान पर है। जानकार बतातें हैं कि यदि तमिलनाडु का साथ नहीं मिला… तो बीजेपी के लिए 400 पार का सपना… शायद सपना ही रह जायेगा। फिलवक्त तमिलनाडु में बीजेपी के रणनीतिकार… शून्य बटे सन्नाटा की खामोशी को चीर कर… बड़ा धमाका करने की जुगत में लगें हैं।

वन्नियार समुदाय के लोगों पर है सभी की नजर

पिछले करीब पांच दशक से तमिलनाडु की राजनीति… दो दलों की धुरी पर नाचती रही है। इसमें से एक है डी.एम.के… और दूसरा है ए.आई.ए.डी.एम.के….। कहतें कि 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमिलनाडु में तीसरा पक्ष खड़ा करने की कोशिश शुरू कर दी है। बीजेपी ने तमिलनाडु में छह दलों से गठबंधन करके… तमिलनाडु का पूरा गेम प्लान चेंज कर दिया है। इनमें सबसे प्रमुख पार्टी है… पी.एम.के…. है। इसके नेता हैं… अंबुमणि रामदास…। तमिलनाडु के वन्नियार समुदाय पर… पी.एम.के. पार्टी की पकड़ काफी मजबूत है। कहतें हैं कि वन्नियार समुदाय की आबादी करीब 6 फीसदी है। बीजेपी की नजर… इस वोट पर है। इसके अलावा बीजेपी ने तमिल मनिला कांग्रेस और दिनाकरण की… अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम के साथ भी गठबंधन कर लिया है। बीजेपी स्वयं यहां बड़े भाई की भूमिका में है। यहां की 39 सीट में से बीजेपी 23 पर चुनाव लड़ रही है। जबकि, 16 सीट पर सहयोगी पार्टी चुनाव लड़ रही है।

तमिल और काशी के बीच सांस्कृतिक संबंध काम आयेगा

आपको याद होगा… वर्ष 2014 में 5.5 फीसदी वोट के साथ बीजेपी ने तमिलनाडु में एक सीट जीती थी। जबकि 2019 में बीजेपी को तमिलनाडु में एक भी सीट नहीं मिला था। हालांकि, 3.66 फीसद वोट लेने में बीजेपी… कामयाबाम हुई थी। जानकार बतातें हैं कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तमिलनाडु से उम्मीदें जुड़ी है। कहतें हिैं कि सबसे पुरानी भाषा और संस्कृति वाले… तमिल समाज का दिल जीतने के लिए पीएम मोदी ने एड़ी- चोटी का जोर लगा दिया है। पिछले पांच साल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तमिलनाडु आते रहे हैं। तमिल और काशी के सांस्कृतिक संबंधों पर उन्होंने खूब जोर दिया है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई… अपने आक्रामक तेवर के कारण तमिलनाडु के जनप्रिय नेता बनने की पुरजोर कोशिश में लगे है। जनसभा में खूब भीड़ जुटा रहें है। पर, इसका बीजेपी को कितना लाभ मिलेगा… यह अभी धुधलके से बाहर आना बाकी है।

कर्नाटक से है बीजेपी को बहुत उम्मीद

दक्षिण भारत में कर्नाटक…  एक ऐसा राज्य है… जहां बीजेपी की सरकार रह चुकी है। पिछली बार बीजेपी कर्नाटक में अकेले चुनाव लड़ी… और 28 में से 25 सीट जीत गई। यानी कर्नाटक में बीजेपी का आधार वोट पहले से मौजूद है। बावजूद इसके इस चुनाव में बीजेपी के रणनीतिकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहते है। लिहाजा, बीजेपी ने पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा की पार्टी से समझौता करके उन्हें तीन सीट दे दिया है। यानी इस बार बीजेपी कर्नाटक की 25 सीटों पर अपना उम्मीदवार उतार रही है। कर्नाटक से बीजेपी को बहुत उम्मीद है।

आंध्रप्रदेश में तीकोना मुकावला होने के आसार

आंध्रप्रदेश में पिछली बार शून्य पर सिमटने के बाद… इस बार बीजेपी ने अपने पुराने पार्टनर के साथ… समझौता कर लिया है। बीजेपी ने आंध्रप्रदेश में दो दलों के साथ तालमेल किया है। इसमें चंद्रबाबू नायडू की तेलगु देशम पार्टी है। जबकि, बीजेपी ने यहां अभिनेता पवन कल्याण की जनसेना पार्टी से भी समझौता कर लिया है। टीडीपी के साथ बीजेपी का जो गठबंधन हुआ है। उसमें लोकसभा की कुल 25 सीटों में 17 पर टीडीपी, 6 पर बीजेपी और दो सीट जनसेना पार्टी के खाते में गई है। आपको बता दें कि वहां विधानसभा के चुनाव भी साथ में हो रहा है। लिहाजा विधानसभा के साथ हुए गठबंधन के तहत टीडीपी 144 बीजेपी 10 और जनसेना 21 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। यानी तमिलनाडु में बड़े भाई की भूमिका वाली बीजेपी… आंध्रप्रदेश में मझले भाई की भूमिका में आ चुकी है।

रेड्डी की बहन गुल खिलायेगी क्या

कहतें हैं कि एक ओर विपक्ष का इंडिया गठबंधन है। विवादित बयान… ईवीएम… और ईडी… आदि में लगी है। दूसरी ओर आंध्रप्रदेश जैसे दक्षिण के राज्यों को फतह करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तिकड़ी बना कर… राजनीति की दिशा को बदलने की कोशिश शुरू कर दी है। कहतें हैं कि समय रहते… विपक्ष को पीएम मोदी की व्यूह रचना… समझ नहीं आया… तो चुनाव का पासा पलटते देर नहीं लगेगा। हालांकि, आंध्रप्रदेश में जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाई.एस.आर.सी.पी. और कांग्रेस… एनडीए के सामने मजबूत चुनौती बन कर खड़ी है। यानी लड़ाई त्रिकोणीय होने के आसार है। जानकारो का कहना है कि  कांग्रेस का अब आंध्रप्रदेश में बहुत बड़ा जनाधार… बचा नहीं है। मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी की बहन पर सभी की नजर है। अब वह कितना कमाल कर पाती है। देखना अभी बाकी है। दूसरी तरफ स्वयं जगनमोहन रेड्डी को यकीन है कि इस चुनाव में फिर से उनका सिक्का चलेगा।

तेलंगाना से होगी तस्वीर साफ

आंध्रप्रदेश से कटकर बनी तेलंगाना में बीजेपी अकेले चुनाव लड़ रही है। पिछली बार बीजेपी को 17 में से चार सीट मिली थी। बीजेपी का दावा है कि इस बार वह डबल डिजिट में होगी। हालांकि यहां दो और अहम गठबंधन मैदान में है। ऐसे में… परिणाम आने तक… सभी की नजर दक्षिण के राज्यों पर लगी रहेगी। हम भी नजर बनाये रहेंगे। आपके पास भी कोई सुझाव हो… तो कमेंट करके बताइए…।

This post was last modified on अप्रैल 8, 2024 2:05 अपराह्न IST 14:05

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Kaushlendra Jha

कौशलेन्द्र झा, KKN Live के संपादक हैं और हिन्दुस्तान (हिन्दी दैनिक) के लिए लगातार लेखन कर रहे हैं। बिहार विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने पत्रकारिता में तीन दशकों से अधिक का अनुभव अर्जित किया है। वे प्रात:कमल, ईटीवी बिहार-झारखंड सहित कई प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़े रहे हैं। सामाजिक कार्यों में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही है—वे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संघ (भारत) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और “मानवाधिकार मीडिया रत्न” सम्मान से सम्मानित किए जा चुके हैं। पत्रकारिता में उनकी गहरी समझ और सामाजिक अनुभव उनकी विश्लेषणात्मक लेखन शैली को विशेष बनाती हैं।

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