मिल्कीपुर उपचुनाव
KKN न्यूज ब्यूरो। उत्तर प्रदेश की राजनीति मिल्कीपुर को लेकर गरम है। मिल्कीपुर में विधानसभा का उपचुनाव होना है। यह उपचुनाव इस क्षेत्र के लिए न केवल राजनीतिक रूप से अहम है बल्कि यह राज्य की आगामी राजनीतिक दिशा को भी निर्धारित कर सकता है। यह सीट समाजवादी पार्टी (सपा) के सांसद अवधेश प्रसाद के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद खाली हुई थी। अब इस सीट पर उपचुनाव का आयोजन हो रहा है, जो 5 फरवरी 2025 को होगा।
मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में कुल 3.58 लाख मतदाता हैं, जिनमें दलित, मुस्लिम, यादव, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, कोरी और चौरसिया समुदायों की प्रमुख भागीदारी है। इन समुदायों का समर्थन राजनीतिक दलों के लिए निर्णायक हो सकता है।
जातीय समीकरणों के आधार पर, दलित और पिछड़े वर्गों के वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं।
समाजवादी पार्टी (सपा):
सपा ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को मैदान में उतारा है। पार्टी ने “पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक” (पीडीए) गठजोड़ पर ध्यान केंद्रित किया है। सपा का मुख्य फोकस यादव और मुस्लिम वोटों को एकजुट रखना है। इसके अलावा, पासी समुदाय को भी साधने की कोशिश की जा रही है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा):
भाजपा ने चंद्रभान पासवान को उम्मीदवार घोषित किया है, जो पासी समुदाय से आते हैं। भाजपा ने अपने संगठनात्मक ढांचे का उपयोग करते हुए जातीय समीकरणों को साधने की योजना बनाई है। भाजपा का लक्ष्य ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य मतदाताओं के साथ-साथ पासी समुदाय का समर्थन प्राप्त करना है।
बहुजन समाज पार्टी (बसपा):
बसपा ने इस उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है। इससे दलित वोटों का विभाजन सपा और भाजपा के बीच होने की संभावना है। बसपा के इस कदम का सपा को फायदा हो सकता है, क्योंकि बसपा के अधिकांश समर्थक सपा के पक्ष में जा सकते हैं।
कांग्रेस:
कांग्रेस ने इस बार सपा का समर्थन करने का निर्णय लिया है। इससे सपा को अतिरिक्त मजबूती मिल सकती है, विशेष रूप से मुस्लिम और ब्राह्मण मतदाताओं के बीच।
मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर 1995 के बाद से दो उपचुनाव हुए हैं, जिनमें सपा ने दोनों बार जीत दर्ज की थी। पिछली बार, सपा के रामचंद्र यादव ने भाजपा के ब्राह्मण उम्मीदवार को हराया था। सपा इस बार भी अपनी जीत दोहराने का प्रयास कर रही है, जबकि भाजपा इस सीट को अपने खाते में लाने के लिए पूरी ताकत लगा रही है।
मिल्कीपुर उपचुनाव राज्य की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। जातीय समीकरण, क्षेत्रीय मुद्दे और राजनीतिक दलों की रणनीतियाँ इस चुनाव के परिणाम को प्रभावित करेंगी। सपा अपने गठजोड़ और इतिहास के आधार पर मजबूत दावेदारी पेश कर रही है, जबकि भाजपा अपने संगठन और जातीय रणनीतियों के दम पर मुकाबला कड़ा करने का प्रयास कर रही है। बसपा के बाहर रहने से उत्पन्न हुए शून्य का फायदा किसे मिलेगा, यह देखना रोचक होगा। यह उपचुनाव उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए एक संकेत साबित हो सकता है।
This post was published on जनवरी 15, 2025 18:56
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