भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक और गौरवपूर्ण अध्याय जुड़ने जा रहा है। भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला, जो अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर Axiom Mission 4 (Ax-4) का हिस्सा हैं, अब 14 जुलाई 2025 को पृथ्वी पर लौटेंगे। यह जानकारी अमेरिकी स्पेस कंपनी Axiom Space Inc. ने आधिकारिक तौर पर साझा की है।
Ax-4 मिशन के तहत, चार अंतरिक्ष यात्री ISS पर दो सप्ताह के वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रायोगिक गतिविधियों के लिए भेजे गए थे। मिशन की अवधि 10 जुलाई को समाप्त होनी थी, लेकिन तकनीकी और मौसम संबंधी परिस्थितियों के चलते उनकी वापसी की तारीख चार दिन आगे बढ़ाकर 14 जुलाई तय की गई है।
Axiom Space ने एक सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से जानकारी दी कि:
“यदि मौसम अनुकूल रहा, तो Ax-4 मिशन के अंतरिक्ष यात्री 14 जुलाई सोमवार को सुबह 7:05 बजे ET (भारतीय समय अनुसार शाम 4:35 बजे) अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से पृथ्वी के लिए रवाना होंगे।”
Ax-4 क्रू में शामिल हैं:
कमांडर पेगी व्हिटसन (संयुक्त राज्य अमेरिका)
पायलट शुभांशु “Shux” शुक्ला (भारत)
मिशन स्पेशलिस्ट स्लावोश “Suave” उजनांस्की (पोलैंड)
मिशन स्पेशलिस्ट टिबोर कापू (हंगरी)
शुभांशु शुक्ला, भारतीय वायुसेना के अनुभवी टेस्ट पायलट और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के प्रतिनिधि के रूप में Ax-4 मिशन का हिस्सा बने। उन्होंने इस मिशन के दौरान अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर 12 वैज्ञानिक प्रयोगों में हिस्सा लिया, जिनमें 7 भारत द्वारा डिजाइन किए गए माइक्रोग्रैविटी प्रयोग और 5 ISRO-NASA संयुक्त सहयोग से जुड़े अध्ययन शामिल हैं।
उनका प्रमुख ध्यान इस बात पर रहा कि अंतरिक्ष में सूक्ष्म शैवाल (microalgae) को उगाकर भोजन, ऑक्सीजन और बायोफ्यूल जैसे संसाधनों को विकसित किया जा सके। ये प्रयोग दीर्घकालीन अंतरिक्ष अभियानों के लिए अत्यंत उपयोगी हो सकते हैं।
Ax-4 मिशन की शुरुआत 26 जून 2025 को हुई थी जब SpaceX का Dragon यान ‘Grace’ अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ा। मिशन का उद्देश्य वैज्ञानिक, तकनीकी और वैश्विक आउटरीच कार्यक्रमों को बढ़ावा देना था।
शुक्ला इस प्रयोग के तहत अंतरिक्ष में शैवाल की वृद्धि, ऑक्सीजन निर्माण, और बायोफ्यूल उत्पादन की क्षमता का परीक्षण कर रहे हैं। Day 15 पर उन्होंने नमूनों की तैनाती और सुरक्षित भंडारण का कार्य जारी रखा।
यह अध्ययन इस बात पर केंद्रित है कि माइक्रोग्रैविटी का आंखों की मूवमेंट, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और न्यूरोलॉजिकल प्रतिक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसके लिए अंतरिक्ष यात्रियों को VR हेडसेट्स और न्यूरल कैप्स पहनाई गईं।
भारत और अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा संयुक्त रूप से कई अध्ययन किए गए, जिनमें शामिल हैं:
मटेरियल साइंस पर प्रयोग
अंतरिक्ष में बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता
सूक्ष्म जैविक प्रणालियों का व्यवहार
Ax-4 मिशन Axiom Space का चौथा व्यावसायिक अंतरिक्ष मिशन है, जिसे NASA और SpaceX के सहयोग से संचालित किया गया। यह मिशन खास इसलिए है क्योंकि इसमें चार देशों के अंतरिक्ष यात्रियों ने हिस्सा लिया और 60 से अधिक प्रयोग, जो 31 देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं, को अंजाम दिया।
मिशन के वैज्ञानिक प्रयासों के अतिरिक्त, टीम ने वैश्विक स्तर पर STEM शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वर्चुअल कक्षा सत्रों और लाइव इंटरैक्शन का भी आयोजन किया, जिनमें भारतीय स्कूलों की भागीदारी भी देखी गई।
Ax-4 मिशन के परिणाम केवल अंतरिक्ष अनुसंधान तक सीमित नहीं हैं। इन प्रयोगों के परिणाम धरती पर भी व्यापक प्रभाव डाल सकते हैं:
स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार
हरित ऊर्जा स्रोतों का विकास
खाद्य सुरक्षा और उत्पादन तकनीक में नवाचार
मानव मानसिक स्वास्थ्य और स्ट्रेस मैनेजमेंट में नई दिशा
Axiom Space का कहना है कि ये शोध न केवल लॉन्ग-टर्म स्पेस मिशनों के लिए मार्गदर्शक होंगे, बल्कि धरती पर जीवन को भी बेहतर बनाएंगे।
तारीख | घटना |
---|---|
26 जून 2025 | Ax-4 मिशन की शुरुआत (Docking at ISS) |
10 जुलाई 2025 | प्रारंभिक मिशन अवधि समाप्त (14 दिन) |
14 जुलाई 2025 | पुनः निर्धारित वापसी (Pending weather) |
Ax-4 में शुभांशु शुक्ला की भूमिका भारत के मानव अंतरिक्ष मिशन “गगनयान” की नींव को मजबूत करती है। गगनयान मिशन की योजना 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में लॉन्च की है। शुक्ला के अनुभव और शोध रिपोर्ट ISRO के भविष्य के प्रशिक्षण, तकनीकी डिज़ाइन और अंतरिक्ष जीवन प्रणाली के विकास में उपयोगी साबित होंगे।
शुभांशु शुक्ला की अंतरिक्ष से वापसी 14 जुलाई 2025 को न केवल एक मिशन की समाप्ति होगी, बल्कि भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक गौरवपूर्ण अध्याय का समापन भी। Ax-4 मिशन के माध्यम से भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिक शोध और अंतरिक्ष तकनीक में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है।
यह मिशन विज्ञान, सहयोग और नवाचार की त्रिवेणी के रूप में इतिहास में दर्ज होगा। आने वाले वर्षों में, ऐसे मिशन भारत को अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में अग्रणी भूमिका में ला सकते हैं।
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