बिहार की सियासत एक बार फिर गर्म होती नजर आ रही है। आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने ऐसा ऐलान कर दिया है, जिससे महागठबंधन के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर तनाव बढ़ना तय माना जा रहा है। सोमवार को मुकेश सहनी ने सोशल मीडिया के माध्यम से घोषणा की कि उनकी पार्टी राज्य की 60 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। यह बयान न सिर्फ VIP की रणनीतिक महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, बल्कि आने वाले दिनों में गठबंधन की बातचीत को भी जटिल बना सकता है।
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VIP ने दिखाई ताकत, साझा की सीटों की योजना
मुकेश सहनी ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए कहा कि 2025 विधानसभा चुनाव में VIP 60 सीटों पर प्रत्याशी खड़ा करेगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि शेष सीटों पर उनके सहयोगी दलों के प्रत्याशी मैदान में होंगे। इस घोषणा के साथ VIP ने यह संकेत देने की कोशिश की है कि अब वह गठबंधन में एक निर्णायक भूमिका निभाना चाहती है और उसे हल्के में लेना राजनीतिक रूप से घाटे का सौदा हो सकता है।
इस रणनीतिक घोषणा को राजनीति के जानकार महज चुनावी शोर के रूप में नहीं देख रहे हैं, बल्कि इसे एक मजबूत message के तौर पर लिया जा रहा है। VIP अब खुद को किसी छोटे सहयोगी दल की भूमिका में नहीं देखती, बल्कि अपने संगठनात्मक आधार और जातिगत समीकरणों के दम पर एक प्रभावशाली भागीदार के रूप में पेश कर रही है।
सीधे जनता से संवाद, traditional politics को चुनौती
मुकेश सहनी का यह ऐलान सोशल मीडिया के माध्यम से किया जाना भी एक सोच-समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। उन्होंने सीधे जनता को संबोधित करते हुए अपने प्लान को सामने रखा, जिससे यह संदेश गया कि VIP अब खुद निर्णय लेने की स्थिति में है। यह पारंपरिक गठबंधन वार्ताओं को दरकिनार करते हुए एक assertive political positioning की ओर इशारा करता है।
हालांकि उन्होंने अन्य सहयोगी दलों की भागीदारी का जिक्र कर यह भी दर्शाया है कि पार्टी फिलहाल गठबंधन से अलग होने के मूड में नहीं है, लेकिन यह शुरुआत आने वाली बातचीत में सीटों के बंटवारे को लेकर VIP की सख्त मांग की भूमिका तैयार कर रही है।
60 सीटों पर दांव: रणनीति या दबाव की राजनीति?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि VIP का यह कदम एक well calculated move है। यह न सिर्फ उनकी चुनावी तैयारी को दर्शाता है बल्कि महागठबंधन में अपनी हिस्सेदारी पक्की करने का दबाव भी बनाता है। यदि सीट बंटवारे की प्रक्रिया में VIP की मांगों को तवज्जो नहीं दी जाती, तो इसका असर गठबंधन की एकता पर पड़ सकता है।
फिलहाल सहनी के इस बयान में flexibility भी नजर आई। उन्होंने सहयोगी दलों के लिए बाकि सीटें छोड़े जाने की बात कहकर यह संकेत दिया कि बातचीत और समझौते की संभावना अभी भी खुली है। लेकिन इतना जरूर है कि इस ऐलान के बाद गठबंधन में VIP को नजरअंदाज कर पाना आसान नहीं होगा।
VIP की सामाजिक पकड़ और चुनावी गणित
मुकेश सहनी की पहचान बिहार में निषाद समुदाय के नेता के रूप में रही है। यह समुदाय पूर्वी और उत्तरी बिहार में खास प्रभाव रखता है। सहनी इसी सामाजिक आधार को राजनीतिक पूंजी में तब्दील करने की कोशिश कर रहे हैं। 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर वह ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि अब उनका जनाधार केवल कुछ इलाकों तक सीमित नहीं रह गया है।
उनका फोकस ऐसे विधानसभा क्षेत्रों पर होगा जहां Mallah या निषाद वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यदि ये रणनीति सफल रहती है, तो VIP राज्य की राजनीति में एक निर्णायक शक्ति बन सकती है।
महागठबंधन की चुनौती और आंतरिक समीकरण
महागठबंधन में पहले से ही RJD, कांग्रेस, लेफ्ट दल और कई छोटे संगठन शामिल हैं। VIP के इस ऐलान ने अंदरूनी समीकरणों को और जटिल कर दिया है। खासकर RJD, जो अब तक सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सीटों पर दावा करती रही है, के सामने VIP की यह नई मांग एक मुश्किल स्थिति पैदा कर सकती है।
इससे पहले भी जब गठबंधन में सीट शेयरिंग की बात आती है, तो अक्सर छोटे दलों की मांगों को लेकर टकराव होता है। VIP के इस कदम से अब दूसरे छोटे दल भी उत्साहित होकर इसी तरह की मांगें कर सकते हैं, जिससे बातचीत लंबी और पेचीदा हो सकती है।
2025 चुनाव का बिगुल और बदलते समीकरण
बिहार की राजनीति हमेशा से गठबंधन और समीकरणों की राजनीति रही है। 2025 का चुनाव कोई अपवाद नहीं होगा। सत्तारूढ़ NDA और विपक्षी महागठबंधन दोनों ही अपने-अपने खेमे को मजबूत करने में जुटे हैं। ऐसे में VIP जैसी पार्टियों की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है, खासकर तब जब उनका टारगेट खास जातिगत और क्षेत्रीय वोट बैंक पर हो।
मुकेश सहनी का यह एलान बताता है कि VIP अब passive ally नहीं, बल्कि एक assertive partner बनना चाहती है जो अपना हक लेकर मैदान में उतरना चाहती है।
विकासशील इंसान पार्टी का 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान न केवल पार्टी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को दर्शाता है बल्कि यह संकेत भी देता है कि बिहार की राजनीति में आने वाले दिनों में गठबंधन की सियासत और जटिल होगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि महागठबंधन में यह दबाव की राजनीति क्या रंग लाती है, और अन्य दल इस पर किस तरह प्रतिक्रिया देते हैं। इतना तय है कि मुकेश सहनी ने अपने पत्ते खोलकर सियासी मैदान में एक नई बहस जरूर छेड़ दी है।
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