KKN गुरुग्राम डेस्क | भारत ने चीन की उस कार्रवाई को सख्ती से खारिज कर दिया है, जिसमें उसने अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की है। विदेश मंत्रालय ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह एक व्यर्थ और बेतुका प्रयास है, जिससे भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
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भारत ने साफ शब्दों में कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है, था और रहेगा। यह प्रतिक्रिया ऐसे समय आई है जब भारत पहले से ही पाकिस्तान के साथ सीमा और आतंकी मुद्दों पर तनाव से जूझ रहा है।
विदेश मंत्रालय का बयान: स्पष्ट और कड़ा रुख
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा:
“हमने देखा है कि चीन ने भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों के नाम बदलने की अपनी व्यर्थ और बेतुकी कोशिशें जारी रखी हैं। हम इस तरह के प्रयासों को अपनी सैद्धांतिक स्थिति के अनुसार स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हैं।”
उन्होंने आगे कहा:
“नाम बदलना उस निर्विवाद सच्चाई को नहीं बदल सकता कि अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अभिन्न हिस्सा है।”
चीन के नाम बदलने का इतिहास: रणनीति या मनोवैज्ञानिक युद्ध?
यह पहली बार नहीं है जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश में स्थानों के नाम बदलने की कोशिश की हो। इससे पहले भी वह कई बार ऐसी सूचियाँ जारी कर चुका है:
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2017: 6 स्थानों के नाम
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2021: 15 स्थानों की सूची
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2023: 11 और स्थानों के नाम
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2025: नई सूची में 30 स्थानों को नया नाम दिया गया
इन नामों में शामिल हैं:
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12 पहाड़ियाँ
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4 नदियाँ
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1 झील
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1 पहाड़ी दर्रा
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11 आवासीय क्षेत्र
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1 भूमि का टुकड़ा
बीजिंग द्वारा अपनाई गई यह नीति एक प्रकार की “नाम देकर दावा ठोकने” (Naming and Claiming) की रणनीति मानी जाती है।
अरुणाचल प्रदेश क्यों है विवाद का केंद्र?
अरुणाचल प्रदेश भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित एक महत्वपूर्ण राज्य है, जिसकी 1,129 किलोमीटर लंबी सीमा चीन के साथ लगती है। चीन इसे “दक्षिण तिब्बत” (South Tibet) बताकर अपना क्षेत्र मानता है, जबकि भारत इसे संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त पूर्ण राज्य के रूप में देखता है।
यह वही क्षेत्र है जहां 1962 का भारत-चीन युद्ध लड़ा गया था। आज भी यहां LAC (Line of Actual Control) पर तनाव की स्थिति बनी रहती है।
भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया: शब्दों से ज्यादा काम पर जोर
भारत ने बीते वर्षों में अरुणाचल प्रदेश में:
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सड़कें और सुरंगें (जैसे सेला टनल) बनाई हैं
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बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत किया है
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सैन्य तैनाती को सुदृढ़ किया है
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स्थानीय प्रशासन और चुनावी प्रक्रिया को गति दी है
इन कदमों से यह स्पष्ट होता है कि भारत केवल कागज़ी दावों पर नहीं, बल्कि जमीनी स्तर पर अपनी संप्रभुता को स्थापित कर चुका है।
विशेषज्ञों की राय: चीन की नीति और भारत की प्रतिक्रिया
लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) राकेश शर्मा कहते हैं:
“चीन की ये नामकरण की रणनीति केवल एक मनोवैज्ञानिक दबाव है। लेकिन भारत की स्थिति मजबूत है क्योंकि उसके पास प्रशासनिक और कानूनी नियंत्रण है।”
रणनीतिक मामलों के जानकार ब्रह्मा चेल्लानी का मानना है:
“यह बीजिंग की ‘लो-कॉस्ट, हाई-विजिबिलिटी’ रणनीति है। भारत की बार-बार अस्वीकृति ही इसे निष्प्रभावी बनाती है।”
अंतरराष्ट्रीय कानून में नाम बदलने की कोई मान्यता नहीं
Montevideo Convention और अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार:
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किसी स्थान का नाम बदलने से उस पर अधिकार सिद्ध नहीं होता
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अधिकार तब मान्य होता है जब देश का उस क्षेत्र पर प्रभावी प्रशासन और नियंत्रण हो
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भारत अरुणाचल प्रदेश में लोकतांत्रिक सरकार, न्याय प्रणाली और चुनाव संचालित करता है
इसलिए, भारत का दावा वास्तविक और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरता है।
🇮🇳 भारत की एकजुट राजनीतिक प्रतिक्रिया
अरुणाचल पर भारत का रुख राजनीतिक रूप से भी मजबूत रहा है:
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कांग्रेस और भाजपा दोनों ने इसे भारत का अभिन्न हिस्सा माना है
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संसद में कई बार चीन के दावों के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए गए हैं
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अमेरिका, जापान, फ्रांस जैसे देश भी अरुणाचल को भारत का हिस्सा मानते हैं
चीन की मंशा: अंदरूनी राजनीति या वैश्विक दबाव?
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि चीन का यह कदम:
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भारत को कूटनीतिक रूप से परेशान करने का प्रयास
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आंतरिक राजनीतिक असंतोष से ध्यान हटाने की कोशिश
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वैश्विक स्तर पर अपने दबदबे का प्रदर्शन
हो सकता है।
लेकिन भारत की ठोस प्रतिक्रिया ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सिर्फ नाम बदलने से जमीनी हकीकत नहीं बदलती।
भारत ने चीन को यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अरुणाचल प्रदेश को लेकर कोई समझौता नहीं होगा। चाहे चीन कितनी भी बार नाम बदले, वह न तो भारत की सीमाएं बदल सकता है और न ही लोगों की राष्ट्रीय भावना।
यह भारत की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का प्रमाण है, जो हर प्रकार की सीमा उल्लंघन या दबाव की राजनीति के खिलाफ मजबूती से खड़ी रहती है।
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