बिहार की राजधानी पटना में हाल ही में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव (एसीएस) डॉ. एस. सिद्धार्थ को लेकर एक बड़ी चर्चा खड़ी हो गई थी। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि डॉ. एस. सिद्धार्थ ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) के तहत अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भेज दिया है। रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया कि उन्होंने 17 जुलाई को ही अपना त्यागपत्र सौंप दिया था।
Article Contents
इन खबरों के वायरल होते ही राज्य के प्रशासनिक हलकों में हलचल मच गई। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे ने तेजी पकड़ी, जिससे लोगों में अफवाहें और अटकलें बढ़ने लगीं। कई लोगों ने यह अनुमान लगाना शुरू कर दिया कि या तो डॉ. सिद्धार्थ किसी आंतरिक असंतोष के चलते VRS ले रहे हैं या किसी निजी कारण से सेवा से हटना चाह रहे हैं।
आधिकारिक बयान में डॉ. सिद्धार्थ ने किया खंडन
हालांकि, इन सारी अटकलों पर विराम तब लगा जब खुद डॉ. एस. सिद्धार्थ ने इन रिपोर्ट्स को पूरी तरह से खारिज कर दिया। शिक्षा विभाग के आधिकारिक मीडिया ग्रुप पर उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि उन्होंने कोई भी इस्तीफा नहीं दिया है और वे अभी भी एसीएस के पद पर कार्यरत हैं। उनका यह बयान ऐसे समय में आया जब सोशल मीडिया पर इस्तीफे की खबरें तेजी से फैल चुकी थीं और कई पोर्टल इसे प्राथमिकता से चला रहे थे।
इस छोटे लेकिन प्रभावशाली बयान के ज़रिये उन्होंने यह साफ कर दिया कि न तो उन्होंने इस्तीफा दिया है और न ही VRS के लिए कोई आवेदन भेजा है। यह बयान ना सिर्फ प्रशासन में पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अफसर अफवाहों के दौर में भी अपनी भूमिका को लेकर सजग हैं।
एक सख्त लेकिन ज़मीनी स्तर से जुड़े अफसर
डॉ. एस. सिद्धार्थ को बिहार के उन गिने-चुने अधिकारियों में शुमार किया जाता है, जिनकी प्रशासनिक कार्यशैली बेहद सख्त लेकिन प्रभावी मानी जाती है। शिक्षा विभाग में उनकी भूमिका को हमेशा सक्रिय और परिणामोन्मुखी के रूप में देखा गया है। वे 1991 बैच के आईएएस अधिकारी हैं और लंबे समय से सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
उन्होंने सरकारी स्कूलों में छात्रों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए कई तरह की रणनीतियां अपनाईं। शिक्षकों की उपस्थिति पर निगरानी रखने के लिए उन्होंने वीडियो कॉल के माध्यम से स्कूलों में सीधे निरीक्षण करना शुरू किया। इससे न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता आई, बल्कि विद्यालयों में अनुशासन और नियमितता भी बेहतर हुई।
डिजिटल मोनिटरिंग और कड़ा निरीक्षण
डॉ. सिद्धार्थ के नेतृत्व में बिहार शिक्षा विभाग ने डिजिटल मोनिटरिंग और रियल-टाइम निरीक्षण की दिशा में बड़ी प्रगति की है। स्कूलों में छात्रों और शिक्षकों की उपस्थिति को लेकर जो लचर रवैया पहले देखने को मिलता था, उसमें उन्होंने काफी हद तक सुधार किया। वे अपने ऑफिस से ही वीडियो कॉल के ज़रिए स्कूलों से जुड़ते रहे और खुद छात्रों से बातचीत करते रहे।
उनकी सबसे बड़ी ताकत यही रही कि वे फील्ड से कटे हुए अफसर नहीं हैं। वे समस्या को डायरेक्ट स्रोत से समझते हैं और उसका त्वरित समाधान ढूंढने की कोशिश करते हैं। यही वजह है कि उन्हें एक मेहनती और ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले अफसर के रूप में जाना जाता है।
जनता से जुड़ाव ने दिलाई अलग पहचान
डॉ. सिद्धार्थ की लोकप्रियता का कारण केवल उनकी अफसरशाही शैली नहीं, बल्कि आम जनता के बीच उनकी सादगी और जुड़ाव भी है। उन्हें कई बार पटना और अन्य इलाकों में चाय की दुकानों पर आम नागरिकों से बातचीत करते देखा गया है। एक बार तो उन्होंने स्थानीय मिठाई की दुकान में खुद मिठाई बनाते हुए भी लोगों को चौंका दिया था। ये छोटे-छोटे किस्से आज सोशल मीडिया पर उनकी पहचान बन चुके हैं।
वे मानते हैं कि अफसरशाही और जनता के बीच एक पारदर्शी संवाद होना चाहिए और इसके लिए ज़रूरी है कि अधिकारी जनता के बीच जाएं, बात करें और उनकी समस्याओं को समझें। उनके ये प्रयास उन्हें एक ‘accessible’ अफसर बनाते हैं, जो केवल फाइलों तक सीमित नहीं रहते।
पहले भी एक वरिष्ठ अफसर ने लिया है VRS
गौर करने वाली बात यह भी है कि हाल ही में बिहार के एक और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी दिनेश कुमार राय ने VRS लेकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। इसी के बाद से यह चर्चा तेज हुई कि संभवतः और अधिकारी भी ऐसा कदम उठा सकते हैं। इसी सिलसिले में डॉ. एस. सिद्धार्थ का नाम भी सामने आया और मीडिया ने बिना पुष्टि के उनके इस्तीफे की खबरें चलानी शुरू कर दीं।
लेकिन अब जबकि उन्होंने खुद सामने आकर सफाई दे दी है, इन सभी चर्चाओं पर पूर्णविराम लग चुका है। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वे अभी सेवा में हैं और नवंबर 2025 में निर्धारित सेवानिवृत्ति तक पद पर बने रहेंगे।
शिक्षा व्यवस्था में सुधार के अहम सूत्रधार
डॉ. एस. सिद्धार्थ की भूमिका केवल एक प्रशासनिक अधिकारी की नहीं, बल्कि शिक्षा सुधारों के कर्ता-धर्ता के रूप में देखी जाती है। वे लगातार इस दिशा में काम करते रहे हैं कि कैसे सरकारी स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई की गुणवत्ता को बेहतर किया जाए। उन्होंने नीतिगत बदलावों के साथ-साथ फील्ड स्तर पर भी व्यवस्था में सुधार के लिए कई फैसले लिए।
उनका मानना रहा है कि technology और data-driven approach से सरकारी शिक्षा व्यवस्था को नया आकार दिया जा सकता है। यही वजह है कि उनके कार्यकाल में विभाग ने कई डिजिटल बदलाव किए हैं, जैसे कि छात्रों की ट्रैकिंग, शिक्षकों के लिए नियमित प्रशिक्षण और स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति का डेटा-आधारित मूल्यांकन।
मीडिया रिपोर्टिंग और सूचना की शुद्धता
यह पूरा घटनाक्रम एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि मीडिया की जिम्मेदारी कितनी बड़ी होती है। जब बिना पुष्टि के रिपोर्टिंग की जाती है, तो अफवाहें तेजी से फैलती हैं और इससे न सिर्फ अफसर की छवि पर असर पड़ता है, बल्कि आम जनता में भ्रम भी पैदा होता है। डॉ. एस. सिद्धार्थ द्वारा दी गई त्वरित सफाई ने यह दिखा दिया कि अफसरों को भी अब सीधे तौर पर मीडिया भ्रम का जवाब देना पड़ रहा है।
भविष्य में यह ज़रूरी होगा कि मीडिया संस्थान किसी भी बड़ी खबर को प्रकाशित करने से पहले आधिकारिक स्रोतों से पुष्टि करें, खासकर जब बात किसी वरिष्ठ सरकारी अधिकारी की हो।
अफवाहों पर विराम, काम पर ध्यान
डॉ. एस. सिद्धार्थ का यह स्पष्ट बयान अब सभी अफवाहों पर विराम लगा चुका है। उन्होंने कहा है कि वे अपने कार्य पर केंद्रित हैं और सेवा में बने रहेंगे। बिहार की शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए जो योजनाएं और नीतियां उनके नेतृत्व में चल रही हैं, वे आगे भी जारी रहेंगी।
इस पूरे मामले से यह भी स्पष्ट होता है कि अफवाहें चाहे जितनी तेज़ हों, अगर अधिकारी पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ सामने आएं तो जनता का भरोसा बनाए रखा जा सकता है। डॉ. सिद्धार्थ फिलहाल अपने पद पर हैं, सक्रिय हैं और शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
Modified on July 23, 2025 – 12:27 AM
Discover more from KKN Live
Subscribe to get the latest posts sent to your email.