KKN गुरुग्राम डेस्क | जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आ रहा है, प्रदेश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। इस बीच कांग्रेस नेता उदित राज ने एक बड़ा बयान देकर सियासी माहौल को और गरमा दिया है। उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान को सीधे तौर पर निशाने पर लेते हुए कहा है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बिना कोई निर्णय नहीं ले सकते।
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उदित राज ने कहा,
“चिराग पासवान बिना मोदी और शाह के इशारे के कोई राजनीतिक कदम नहीं उठा सकते। वह स्वतंत्र नेता नहीं हैं।”
यह बयान ऐसे समय आया है जब बिहार में एनडीए की सीट शेयरिंग और विपक्षी गठबंधन की रणनीति चर्चा में है।
क्या चिराग पासवान हैं बीजेपी के मोहरे?
चिराग पासवान, दिवंगत नेता रामविलास पासवान के बेटे हैं, जो अब एलजेपी (रामविलास) का नेतृत्व कर रहे हैं। 2020 में पार्टी में विभाजन के बाद चिराग ने खुद को बीजेपी समर्थक के तौर पर स्थापित किया, लेकिन वह एनडीए का औपचारिक हिस्सा नहीं बने।
हालांकि, कई मौकों पर उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का खुला समर्थन किया है, जिससे विपक्ष उन्हें बीजेपी का ‘बी-टीम’ कहता रहा है। उदित राज का ताजा बयान इसी धारणा को मजबूत करता है कि चिराग पासवान स्वतंत्र निर्णय नहीं लेते, बल्कि दिल्ली के निर्देशों पर चलते हैं।
कांग्रेस की रणनीति: एनडीए सहयोगियों को कमजोर दिखाना
कांग्रेस का मकसद स्पष्ट है – वह एनडीए के सहयोगी दलों को जनता के सामने कमजोर और निर्भर दिखाना चाहती है। उदित राज जैसे नेता, जो दलित समुदाय से आते हैं, इस तरह के बयानों से एलजेपी के वोट बैंक, खासकर पासवान समाज को प्रभावित करना चाहते हैं।
“बिहार को ऐसे नेता की जरूरत है जो दिल्ली का आदेश नहीं, बल्कि बिहार के लोगों की बात सुने,” – उदित राज।
इतिहास दोहराने की कोशिश या नई चाल?
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का नाम लगातार लेते रहे। इस रणनीति ने नीतीश कुमार को नुकसान पहुंचाया, पर भाजपा को अधिक नुकसान नहीं हुआ।
इस वजह से उन्हें भाजपा का छुपा सहयोगी माना गया। उदित राज के बयान उसी रणनीति की याद दिलाते हैं – यह बताने की कोशिश कि चिराग पासवान की राजनीति एनडीए को फायदा पहुंचाने के लिए है, ना कि बिहार की जनता के लिए।
भाजपा और चिराग की चुप्पी पर सवाल
उदित राज के बयान पर अब तक बीजेपी और चिराग पासवान की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है – क्या भाजपा इस मुद्दे को तूल नहीं देना चाहती? या फिर रणनीतिक रूप से जवाब देने से बच रही है?
चिराग पासवान की चुप्पी को उनके आलोचक इस रूप में देख रहे हैं कि वह सच को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं समर्थकों का कहना है कि वह ऐसे बयानों को महत्व नहीं देते।
दलित वोट बैंक पर कांग्रेस की नजर
बिहार की राजनीति में दलित वोट बैंक हमेशा निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। चिराग पासवान का असर विशेषकर पासवान समुदाय में मजबूत है। ऐसे में कांग्रेस की कोशिश है कि इस समुदाय को यह बताया जाए कि चिराग अब दलितों के हक की नहीं, बल्कि दिल्ली की सत्ता की राजनीति कर रहे हैं।
“वास्तविक दलित नेतृत्व वह है जो अपने समाज के मुद्दों को उठाए, ना कि सत्ता के इशारों पर चले,” – उदित राज।
बिहार कांग्रेस की पुनर्जीवन की कोशिश
बिहार में कांग्रेस का जनाधार पिछले कई चुनावों में कमजोर हुआ है। पार्टी न केवल संगठनात्मक स्तर पर बल्कि जनसंपर्क और नेतृत्व के मामले में भी पिछड़ती रही है। ऐसे में उदित राज जैसे नेता के बयानों से पार्टी यह संकेत देना चाहती है कि वह सक्रिय विपक्ष की भूमिका निभाने को तैयार है।
कांग्रेस की रणनीति है कि वह दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच अपनी पकड़ दोबारा मजबूत करे।
एनडीए की सीट बंटवारे की रणनीति में चिराग की भूमिका
एनडीए में बीजेपी, जेडीयू, हम (HAM) और वीआईपी (VIP) जैसे छोटे दल शामिल हैं। चिराग पासवान को सीटें वोट ट्रांसफर क्षमता के आधार पर मिलती हैं, न कि स्वतंत्र जनाधार पर। उदित राज का बयान इस गठबंधन की इसी रणनीति को चुनौती देता है – यह बताते हुए कि ये छोटे दल केवल सत्ता संतुलन के मोहरे हैं।
क्या मोदी फैक्टर से मिलेगी चिराग को बढ़त?
बिहार की राजनीति में मोदी का प्रभाव अब भी मजबूत है। चिराग पासवान लगातार खुद को प्रधानमंत्री मोदी का समर्थक बताते आए हैं। ऐसे में उदित राज का बयान यह संकेत देता है कि वोटरों को अब मोदी लहर से आगे बढ़कर स्थानीय नेतृत्व पर ध्यान देना चाहिए।
हालांकि, कांग्रेस को भी यह समझना होगा कि मोदी का नाम सीधे तौर पर हमला करने से वोटर नाराज भी हो सकते हैं। इसलिए भविष्य की रणनीति में संयम और संतुलन दोनों जरूरी होंगे।
बिहार की सियासत में आने वाले हफ्तों में बयानबाजी और तीखी टिप्पणियां और तेज होंगी। उदित राज के बयान ने यह सवाल फिर से जिंदा कर दिया है – क्या चिराग पासवान स्वतंत्र राजनीतिक सोच रखते हैं, या वे केवल बीजेपी की रणनीति का हिस्सा हैं?
बिहार की जनता इस चुनाव में सिर्फ वादों और चेहरों को नहीं, बल्कि राजनीतिक ईमानदारी और स्वाभिमान को भी वोट देगी। और ऐसे में हर नेता को अपनी स्वतंत्रता और प्रतिबद्धता को साबित करना होगा।
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