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द हिंदू लिट फॉर लाइफ 2025: दूसरे दिन के मुख्य आकर्षण और महत्वपूर्ण विचार

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  गुरुग्राम डेस्क | द हिंदू लिट फॉर लाइफ  महोत्सव का दूसरा दिन चेन्नई में आयोजित हुआ और इस दिन ने राजनीति, इतिहास, स्वास्थ्य, साहित्य और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर गहरी चर्चाएँ और संवाद प्रस्तुत किए। यह महोत्सव विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्तित्वों को एक मंच पर लाता है, जो अपने अनुभवों और विचारों को साझा करते हैं। इस लेख में हम दूसरे दिन की महत्वपूर्ण चर्चाओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिनमें ऐतिहासिक घटनाओं, राजनीतिक विमर्श, एकीकृत चिकित्सा, और विशेषज्ञों के व्यक्तिगत विचार शामिल हैं।

मुकुंद पद्मनाभन का द्वितीय विश्व युद्ध पर व्याख्यान: ब्रिटिशों ने मरीन बीच पर जापानियों को डराने के लिए फर्जी किला बनाया

मुकुंद पद्मनाभन, लेखक और द हिंदू के पूर्व संपादक, ने दूसरे दिन के कार्यक्रम में अपने पुस्तक “द ग्रेट फ्लैप ऑफ 1942” से 1942 में जापानी हमले की संभावना और उसके परिणामस्वरूप मद्रास (अब चेन्नई) के पलायन पर अपनी शोध को साझा किया। उन्होंने बताया कि ब्रिटिश उपनिवेशी सरकार ने युद्ध के दौरान मद्रास की रक्षा के लिए मरीन बीच पर एक फर्जी किला तैयार किया था, जिसका उद्देश्य जापानी आक्रमण को रोकने के लिए एक डर का माहौल बनाना था।

पद्मनाभन के अनुसार, ब्रिटिशों को यह डर था कि यदि जापानी मद्रास पर हमला करते हैं तो यह भारत के लिए विनाशकारी हो सकता है, खासकर जब जापान का प्रभाव दक्षिण-पूर्व एशिया में था। उन्होंने बताया कि ब्रिटिश अधिकारियों ने मरीन बीच पर एक कृत्रिम सैन्य किले का निर्माण किया ताकि जापानियों को यह एहसास हो कि यह एक सशस्त्र क्षेत्र है, जिससे वे हमला करने से हिचके। यह ऐतिहासिक घटना मद्रास के द्वितीय विश्व युद्ध के इतिहास में एक दिलचस्प अध्याय के रूप में मानी जाती है, और इसने यह दर्शाया कि ब्रिटिशों ने भारत के महत्वपूर्ण समुद्री क्षेत्रों की रक्षा के लिए कितनी दूर तक सोचा।

स्वास्थ्य पर चर्चा: एकीकृत चिकित्सा और मानसिक-शारीरिक संबंध

स्वास्थ्य पर भी इस दिन के सत्रों में गहरी चर्चा हुई। “एकीकृत चिकित्सा का वादा” नामक सत्र में डॉ. इसाक मैथाई, सौक्य इंटरनेशनल होलिस्टिक हेल्थ सेंटर के मेडिकल डायरेक्टर, और डॉ. ई. एस. कृष्णमूर्ति, एक व्यवहारिक न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरोसायकियाट्रिस्ट ने संवाद किया। इस सत्र में दोनों विशेषज्ञों ने बताया कि पारंपरिक चिकित्सा, मानसिक स्वास्थ्य और जीवनशैली में बदलाव को जोड़कर एकीकृत चिकित्सा का महत्व बढ़ रहा है।

डॉ. मैथाई ने कहा कि स्वास्थ्य केवल शरीर में जो है, उस पर निर्भर नहीं करता, बल्कि यह व्यक्ति की मानसिक और भावनात्मक स्थिति से भी जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि इम्यून सिस्टम की देखभाल रोगों की रोकथाम में महत्वपूर्ण है, और स्वस्थ आहार, व्यायाम, और जीवनशैली को इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए। आजकल के तनावपूर्ण जीवन में जहां जीवनशैली से संबंधित बीमारियाँ बढ़ रही हैं, उन्होंने यह भी कहा कि एक holistic दृष्टिकोण ना केवल लक्षणों को दूर करता है, बल्कि रोगों के मूल कारणों को भी ठीक करने की क्षमता रखता है।

डॉ. कृष्णमूर्ति ने मानसिक स्वास्थ्य पर जोर देते हुए बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन () ने पहले ही यह स्वीकार किया है कि स्वास्थ्य सिर्फ शारीरिक नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा, “हम पहले बड़े स्थानों में रहते थे, बच्चे बाहर खेलते थे, लेकिन अब उन्हें छोटे अपार्टमेंट में रखा जाता है, इससे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है।” उनका कहना था कि आज के युवा मानसिक स्वास्थ्य के बारे में ज्यादा जागरूक हैं, लेकिन सामाजिक दबाव और समर्थन प्रणाली की कमी के कारण समस्याएँ और बढ़ रही हैं।

अरुणा रॉय और टी.एम. कृष्णा की राजनीति और पहचान पर चर्चा

दूसरे दिन के एक और दिलचस्प सत्र में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय और प्रसिद्ध कर्नाटिक संगीतकार टी.एम. कृष्णा ने “व्यक्तिगत है राजनीतिक” विषय पर चर्चा की। इस सत्र में उन्होंने नारीवादसामाजिक सक्रियता, और धार्मिकता के बीच अंतर्संबंध पर चर्चा की। रॉय और कृष्णा ने यह बताया कि कैसे व्यक्तिगत पहचान और राजनीतिक जुड़ाव आपस में जुड़े होते हैं, खासकर एक विभाजनकारी समाज में।

कृष्णा, जो कला के क्षेत्र में सक्रिय हैं, ने बताया कि कलाकारों का समाज में बदलाव लाने में बड़ा हाथ होता है। उन्होंने कहा कि कला और संगीत सिर्फ मनोरंजन के रूप में नहीं देखे जाने चाहिए, बल्कि ये समाज की स्थापित धारा को चुनौती देने का एक प्रभावी माध्यम हैं। अरुणा रॉय ने भी अपनी बात साझा करते हुए बताया कि सामाजिक सक्रियता और आत्मचिंतन के बीच संतुलन बनाना आवश्यक है, ताकि व्यक्ति समग्र राजनीतिक आंदोलन का हिस्सा बन सके।

“वन हेल्थ” पर चर्चा: मानव, पशु और पर्यावरण स्वास्थ्य का आपसी संबंध

दूसरे दिन का एक प्रमुख सत्र “वन हेल्थ: गाइडिंग अवर फ्यूचर था, जिसमें डॉ. सौम्या स्वामीनाथन, सुप्रिय साही आईएएस, और राम्या कन्नन ने “वन हेल्थ” की अवधारणा पर चर्चा की। इस सत्र में बताया गया कि मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, और पर्यावरण स्वास्थ्य एक-दूसरे से गहरे रूप से जुड़े हुए हैं। डॉ. स्वामीनाथन ने कहा कि  महामारी ने यह दिखाया कि ये सभी पहलू एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और हमें स्वास्थ्य के मुद्दों को एकीकृत दृष्टिकोण से देखना चाहिए।

सुप्रिय साही ने पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए बताया कि कैसे पर्यावरणीय बदलाव मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि बीमारियाँ अब केवल मानवों में ही नहीं, बल्कि जानवरों में भी फैल रही हैं, जो कि बदलते पर्यावरण का नतीजा है। यह सत्र सार्वजनिक स्वास्थ्य और नीति निर्माण में एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर देता है।

साहित्य पर चर्चा: स्थान और लेखन

एक और महत्वपूर्ण सत्र “भूगोल और किस्मत: स्थान कैसे लेखन को प्रभावित करते हैं” था, जिसमें डॉ. अब्राहम वर्गीस ने अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि कैसे हम जिस स्थान को घर मानते हैं, वह हमारी पहचान को आकार देता है और लेखन में भी इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। डॉ. वर्गीस ने कहा कि जब लेखक अपने घर से बाहर रहते हैं, तो उन्हें समाज को एक बाहरी दृष्टिकोण से देखने का अवसर मिलता है, जो उनके लेखन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।

डॉ. पीटर फ्रेंकोपैन, एक प्रसिद्ध इतिहासकार, ने भी इस सत्र में भाग लिया और बताया कि कैसे राजनीति इतिहास लेखन को प्रभावित करती है। उन्होंने यह बताया कि इतिहासकारों को कई बार सत्ता संरचनाओं के दबाव के कारण इतिहास को विकृत रूप में प्रस्तुत करना पड़ता है। यह सत्र यह समझने में मदद करता है कि इतिहास और राजनीति के बीच संबंधों को कैसे सही रूप से समझा जाए।

प्रसिद्ध रेस्तरां और समुदाय

एक और सत्र में रूथ डी’सूज़ा प्रभु, एक प्रसिद्ध खाद्य लेखक, ने चर्चा की कि कैसे कुछ रेस्तरां अपनी प्रसिद्धि और समुदाय में स्थायी स्थान बनाते हैं। उन्होंने एमटीआर जैसे रेस्तरां की कहानी साझा की, जो बेंगलुरू में एक छोटे से गांव से आए परिवार द्वारा शुरू किया गया था। प्रभु ने बताया कि “यह सिर्फ नाम और प्रसिद्धि के बारे में नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा उत्पाद बनाने के बारे में है जिसे लोग पीढ़ियों तक पसंद करते रहें।”

उन्होंने कहा, “खाद्य संस्कृति केवल स्वाद का मामला नहीं है, बल्कि यह समुदाय की पहचान और सांस्कृतिक धरोहर का भी हिस्सा है।” उनका विचार था कि खाद्य उत्पाद पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों के बीच संबंधों को मजबूती से जोड़ते हैं।

द हिंदू लिट फॉर लाइफ 2025 महोत्सव का दूसरा दिन बौद्धिक दृष्टिकोण से समृद्ध था। मुकुंद पद्मनाभन के द्वितीय विश्व युद्ध पर विचार से लेकर एकीकृत चिकित्सा तक, इस दिन की चर्चाएँ समाज, राजनीति, साहित्य और स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं। यह महोत्सव एक मंच प्रदान करता है जहां विचारों का आदान-प्रदान होता है और समाज की जटिलताओं को समझने का अवसर मिलता


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