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पटना में निकली पुरी जैसी भव्य रथ यात्रा, श्रद्धा और भक्ति में डूबा शहर

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बिहार की राजधानी पटना ने आज एक बार फिर आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक एकता का अद्भुत दृश्य प्रस्तुत किया, जब यहां भगवान श्रीजगन्नाथ, बलभद्र और माता सुभद्रा की भव्य रथ यात्रा निकाली गई। पुरी की प्रसिद्ध रथ यात्रा की तर्ज पर आयोजित यह आयोजन इस वर्ष भी इस्कॉन पटना द्वारा भव्य रूप से संपन्न हुआ।

हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित होने वाली यह रथ यात्रा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता का प्रतीक बन चुकी है।

 इस्कॉन पटना से हुई रथ यात्रा की शुरुआत

रथ यात्रा की शुरुआत इस्कॉन मंदिर पटना से सुबह के समय हुई, जहां पहले भगवान श्रीजगन्नाथ, श्री बलभद्र और माता सुभद्रा की प्रतिमाओं का विशेष श्रृंगार और पूजन किया गया। भक्ति संगीत, मंत्रोच्चारण और वैदिक रीति से पूजा करने के बाद तीनों देवताओं को सुसज्जित रथ पर विराजमान किया गया।

इसके पश्चात भक्तों ने “हरे कृष्णा हरे राम” की गूंज के साथ रथ की रस्सी खींचकर यात्रा का शुभारंभ किया। भक्तों का उत्साह देखते ही बन रहा था—कोई भजन गा रहा था, तो कोई नृत्य कर रहा था।

 पटना शहर की सड़कों पर निकली रथ यात्रा

इस रथ यात्रा ने पटना शहर के मुख्य मार्गों से गुजरते हुए श्रद्धालुओं को भगवान के दर्शन का सौभाग्य प्रदान किया। रथ यात्रा का मार्ग इस प्रकार रहा:

  • इस्कॉन मंदिर से प्रारंभ होकर

  • बुद्ध मार्ग,

  • तारामंडल,

  • इनकम टैक्स गोलंबर,

  • बेली रोड होते हुए

  • बिहार म्यूज़ियम तक पहुँची।

यहां से रथ ने यू-टर्न लिया और वापसी मार्ग में:

  • विमेंस कॉलेज,

  • स्कूल नंबर इलाका,

  • कोतवाली,

  • डाकबंगला चौराहा,

  • मौर्यालोक कॉम्प्लेक्स होते हुए

  • पुनः इस्कॉन मंदिर पहुंच कर यात्रा का समापन हुआ।

पूरे मार्ग में स्थानीय लोगों ने फूलों की वर्षा, आरती, और भजन संकीर्तन के माध्यम से भगवान का स्वागत किया।

 अंतरराष्ट्रीय श्रद्धालुओं की विशेष भागीदारी

इस वर्ष की रथ यात्रा को खास बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही अंतरराष्ट्रीय भक्तों की। इस्कॉन रथ यात्रा समिति के अध्यक्ष राम मनोहर दास ने जानकारी दी कि इस बार विशेष रूप से मायापुर धाम से भक्तों का एक दल इस यात्रा में शामिल हुआ है।

इसके अलावा, इंग्लैंड और नाइजीरिया से कीर्तन मंडलियाँ पटना पहुंचीं, जिन्होंने हरिनाम संकीर्तन और भक्ति संगीत के माध्यम से रथ यात्रा को और अधिक भक्तिमय बना दिया। विदेशी भक्त पारंपरिक भारतीय पोशाकों में रथ यात्रा में भाग लेते दिखे, जो सांस्कृतिक एकता का प्रतीक था।

 पटना की सड़कों पर उमड़ा भक्ति का सैलाब

रथ यात्रा के दौरान पटना की गलियों में भक्ति और उल्लास का अद्भुत संगम देखने को मिला। बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई भगवान के रथ को खींचने और उनके दर्शन के लिए लालायित दिखा। इस्कॉन के स्वयंसेवकों ने भक्तों के लिए जलपान, प्रसाद वितरण, और प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था की।

शहर के कोने-कोने से भक्तों का हुजूम उमड़ा, वहीं कई लोगों ने घर के बाहर रथ यात्रा के स्वागत हेतु सजावट की और श्रद्धा पूर्वक पूजा-अर्चना की।

रथ यात्रा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि भगवान स्वयं अपने भक्तों के बीच आते हैं। पुरी की रथ यात्रा की भांति पटना की यह यात्रा भी समाज को भक्ति, समर्पण और समानता का संदेश देती है।

इस आयोजन के माध्यम से:

  • भक्ति आंदोलन को पुनर्जीवित किया जाता है,

  • नवयुवकों को आध्यात्मिक मार्ग पर प्रेरणा मिलती है,

  • और विभिन्न संस्कृतियों का संगम भी देखने को मिलता है।

पटना जैसे महानगर में इस प्रकार की धार्मिक गतिविधियाँ सांस्कृतिक पहचान को सशक्त करने में सहायक हैं।

 इस्कॉन पटना: आध्यात्मिकता का केंद्र

इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शसनेस (ISKCON), जिसे सामान्यतः इस्कॉन कहा जाता है, आज विश्व भर में भगवद गीता के ज्ञान और वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। इस्कॉन पटना न केवल रथ यात्रा जैसे आयोजनों में सक्रिय है, बल्कि यहां:

  • गीता शिक्षण कक्षाएं,

  • युवाओं के लिए ध्यान और आध्यात्मिक मार्गदर्शन,

  • नियमित भजन-कीर्तन,

  • और मुफ्त प्रसाद वितरण जैसे सेवा कार्य भी होते हैं।

 श्रद्धालुओं के लिए विशेष संदेश

इस रथ यात्रा ने साबित कर दिया कि भक्ति की भाषा वैश्विक होती है। देश और विदेश से आए हज़ारों श्रद्धालु जब एक साथ भगवान के नाम का संकीर्तन करते हैं, तो न केवल धार्मिक एकता, बल्कि मानवता की शक्ति भी झलकती है।

पटना की जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 एक ऐसी घटना बन गई है, जिसे आने वाले वर्षों तक याद किया जाएगा। न केवल इसकी भव्यता, बल्कि इसमें शामिल हुई अंतरराष्ट्रीय भक्ति भावना, सांस्कृतिक समरसता, और समाज सेवा के कार्यों ने इसे ऐतिहासिक बना दिया।

पुरी की रथ यात्रा की तरह पटना में भी अब यह परंपरा हर साल और अधिक भव्य रूप लेती जा रही है, जो यह दर्शाता है कि आधुनिक शहरों में भी आध्यात्मिक मूल्यों की गूंज आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।


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